भारत अब जाएगा शुक्र की ओर, जानिए क्या करेगा वहां, क्यों ऑक्सीजन होते हुए भी जीवन नहीं है?
भारत जल्द ही अपने अंतरिक्ष अभियानों में एक नया अध्याय जोड़ने वाला है। इस बार लक्ष्य है शुक्र ग्रह, जिसे वीनस के नाम से भी जाना जाता है। केंद्र सरकार ने इसरो को शुक्रयान मिशन के लिए हरी झंडी दिखा दी है। इसरो का ये मिशन, भारत को उन देशों की कतार में खड़ा करेगा, जो पहले से ही शुक्र ग्रह की जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं।
शुक्र ग्रह पर पहले से ही वैज्ञानिकों की दिलचस्पी बनी हुई है क्योंकि ये ग्रह कई मायनों में पृथ्वी से मिलता-जुलता है। लेकिन एक बड़ा सवाल ये है कि जहां ऑक्सीजन है, वहां जीवन क्यों नहीं है? आइए जानते हैं इस मिशन और शुक्र ग्रह के बारे में पूरी जानकारी।
शुक्र पर जीवन क्यों नहीं है?
शुक्र ग्रह पर जीवन को लेकर कई सवाल उठते हैं। मुख्य कारण ये है कि जहां शुक्र पर ऑक्सीजन मौजूद है, वहां जीवन के लिए अनुकूल स्थितियां नहीं हैं। शुक्र का वातावरण बेहद गर्म और विषाक्त है। यहां का तापमान सतह पर 450°C से भी अधिक होता है, जो इसे “नरक ग्रह” की संज्ञा दिलाता है।
शुक्र के वायुमंडल में सल्फ्यूरिक एसिड के बादल छाए रहते हैं और इस वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की भारी मात्रा मौजूद है। इसलिए, यहां सांस लेने वाली ऑक्सीजन नहीं है, बल्कि यहां मौजूद ऑक्सीजन ऐसे रूप में है जो जीवन के लिए खतरनाक हो सकती है।
ऑक्सीजन की मौजूदगी, लेकिन जीवन की नहीं
शुक्र ग्रह पर वैज्ञानिकों ने ऑक्सीजन का पता लगाया है, लेकिन यह ऑक्सीजन पृथ्वी की तरह उपयोगी नहीं है। यहां की ऑक्सीजन एकल परमाणुओं में पाई जाती है, जो फेफड़ों के लिए खतरनाक हो सकती है। यह ऑक्सीजन वायुमंडल की दो सल्फ्यूरिक एसिड बादलों की परतों के बीच 100 किलोमीटर की ऊंचाई पर मिलती है।
इस ऑक्सीजन का तापमान भी बेहद कम होता है, दिन में माइनस 120°C और रात में माइनस 160°C तक। ऐसे में, यह ऑक्सीजन मानव जीवन के लिए बिल्कुल भी उपयोगी नहीं है।
2028 में भारत भेजेगा शुक्रयान
इसरो ने वर्ष 2028 में शुक्र की कक्षा में अपना यान भेजने की योजना बनाई है। इस मिशन पर 1,236 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। शुक्रयान का मुख्य उद्देश्य शुक्र के वायुमंडल का अध्ययन करना, सौर विकिरण का मापन करना और ग्रह की सतह पर होने वाली गतिविधियों को समझना होगा।
इस मिशन के जरिए वैज्ञानिक शुक्र के वातावरण में छिपी कई जानकारियां जुटाने की कोशिश करेंगे, जो पृथ्वी और अन्य ग्रहों के पर्यावरण को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकती हैं।
शुक्रयान मिशन की शुरुआत
शुक्र के लिए भारत का पहला मिशन 2012 में तिरुपति अंतरिक्ष सम्मेलन में पेश किया गया था, लेकिन यह आगे नहीं बढ़ सका। हालांकि, इसरो ने इसका अध्ययन जारी रखा और 2017 में यह तय किया गया कि भारत शुक्र के लिए मिशन भेजेगा। अब, यह मिशन 2028 में लॉन्च किया जाएगा और शुक्र की कक्षा से लगभग 55 किलोमीटर की ऊंचाई पर वहां की स्थिति पर नजर रखेगा।
शुक्र के मिशनों का इतिहास
1960 से अब तक 46 मिशन शुक्र ग्रह के लिए भेजे जा चुके हैं। अमेरिका, रूस, जापान और यूरोप जैसे बड़े देशों ने शुक्र पर अपनी रुचि दिखाई है। हाल ही में चीन भी शुक्र के मिशन पर काम कर रहा है और अब भारत भी इस कतार में शामिल हो गया है।
शुक्र को लेकर वैज्ञानिकों की रुचि इसलिए बढ़ी है क्योंकि यह ग्रह कभी पृथ्वी जैसा हुआ करता था। लेकिन समय के साथ यह एक गर्म और विषाक्त ग्रह में बदल गया। इस अध्ययन से यह समझा जा सकता है कि किस तरह से पृथ्वी भी ऐसी ही स्थिति में जा सकती है अगर ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएं बढ़ती गईं।
क्या पृथ्वी भी बन सकती है शुक्र जैसी?
शुक्र ग्रह को लेकर वैज्ञानिकों का मानना है कि यह कभी पृथ्वी की तरह था, लेकिन अब इसकी सतह जीवन के लिए बेहद खतरनाक है। शुक्र ग्रह के अध्ययन से यह समझा जा सकता है कि किस तरह से ग्रहों पर जलवायु परिवर्तन के कारण जीवन समाप्त हो सकता है। अगर पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग इसी तरह से बढ़ती रही, तो एक दिन पृथ्वी भी शुक्र की तरह हो सकती है।